केतु ग्रह
केतु ग्रह – भारतीय ज्योतिष में राहु और केतु को भी नवग्रहों में गिना जाता है। ये दोनों ही ग्रह अशुभ प्रभाव वाले ग्रह माने जाते हैं। समुद्र मंथन की कथा के अनुसार ये दोनों ग्रह वस्तुत: एक ही दैत्य के दो भाग हैं। भगवान विष्णु ने रूप बदलकर देवताओं की पंक्ति में अमृत पीने के कारण अपने सुदर्शन से दैत्य का सिर और धड़ अलग कर दिया था। जिनमें से सिर के भाग को राहु और धड़ के भाग को केतु कहते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब ये ग्रह कुंडली में गलत स्थान पर होते हैं तो जीवन में परेशानियां पैदा करने लगते हैं। आइए जानते हैं कुंडली में केतु के दुष्प्रभाव से बचने के लिए क्या करना चाहिए।
1-केतु के बुरे और नकारात्मक प्रभाव से बचने के लिए भगवान गणेश की पूजा करना सबसे आसान उपाय है। गणेश जी को केतु का कारक देवता माना गया है। बुधवार के दिन गणेश पूजन करने तथा अथर्वास्तोत्र का पाठ पढ़ने से केतु के दुष्प्रभाव को दूर किया जा सकता है।
2- केतु ग्रह के संकट को दूर करने के लिए काले रंग की गाय का दान करना भी एक उपाय है। लेकिन आर्थिक और सुविधा की दृष्टि से मुश्किल होने पर काली गाय के चारा खिलाने और उसकी सेवा करने से भी ये संकट दूर हो सकता है।
केतु ग्रह से मुक्ति के लिए :
3- केतु ग्रह से मुक्ति के लिए गरीब, असहाय, अपंग व्यक्तियों को भोजन, धन आदि का दान करना चाहिए। कभी भी भूलकर उनका अपमान न करें और यथा संभव उनकी मदद करें केतु का दुष्प्रभाव समाप्त होता है।
4- काले-सफेद कुत्ते को नियमिततौर पर अपने भोजन का कुछ हिस्सा खाने को दें। यदि यह संभव न हो तो काल और सफेद तिल बहते हुए जल में प्रवाहित करें। ऐसा करने से केतु का दुष्प्रभाव जाता रहता है।
5- कुंडली में व्याप्त केतु की अशुभता को दूर करने के लिए केतु बीज मंत्र का जाप करना चाहिए। केतु का एकाक्षरी बीज मंत्र…
‘ॐ कें केतवे नमः॥
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