माता सीता की अग्निपरीक्षा
(माता सीता) रावण के वध के बाद भगवान राम का माता सीता से मिलन होता हैं। वहीं इसके बाद प्रभु राम, ना चाहते हुए भी माता सीता को अपनी पवित्रता सिद्ध करने के लिए अग्निपरीक्षा से गुजरने के लिए कहते हैं, क्योंकि प्रभु राम, माता सीता की पवित्रता के लिए फैली अफवाहों को गलत साबित करना चाहते हैं।
जिसके बाद माता सीता अपने प्रभु के आदेश का पालन करने के लिए अग्नि परीक्षा के लिए तैयार हो जाती है, वहीं जब वे अग्नि में प्रवेश करती तो, उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचा है।
जिससे वह यह साबित करती हैं कि अग्नि की तरह पवित्र है। वहीं अब भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण का 14 साल का वनवास का समय पूरा हो चुका था।
जिसके बाद वे अयोध्या वापस आते हैं जहां उनका जोरदार स्वागत होता है। इसी दिन कार्तिक महीने की अमावस्या की घोर अंधेरी रात होती है लेकिन भगवान राम के आगमन से पूरी अयोध्या नगरी दीपकों की रोशनी से जगमगा उठती है।
अयोध्या लौटने के बाद भगवान राम का राज्यभिषेक होता है। और फिर रामराज्य की शुरुआत होती है
उत्तरकांड
उत्तराकांड, हिन्दू धर्म के महाकाव्य रामायण का आखिरी सोपन है। इसमें 111 सर्ग और 3432 श्लकों की संख्या है। उत्तरकाण्ड में राजा राम के सुखद जीवन की व्याख्या, सीता जी का त्याग और लव-कुश के जन्म का वर्णन मिलता है।
पुराणों के अनुसार, उत्तरकाण्ड का पाठ आनंदमय जीवन और सुखद यात्रा के लिए किया जाता है। उत्तरकाण्ड को रामायण का सार भी कहा जा सकता है। इस भाग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के सभी लक्षणों का वर्णन किया गया है।
लव-कुश का जन्म
भगवान श्री राम के राजा बनने के बाद भगवान राम अपनी पत्नी माता सीता के साथ सुखद जीवन व्यतीत करते हैं। वहीं कुछ समय बाद माता सीता गर्भवती हो जाती हैं।
इस दौरान अयोध्या में माता-सीता के लंका में रहने की खबर आग की तरह फैलने लगी थी, उस समय अगर कोई पत्नी एक रात भी अपने पति से दूर रहती थी उसे दोबारा पति के घर में दाखिल होने की इजाजत नहीं थी।
वहीं इसको लेकर राजा राम पर सवाल उठने लगे। और फिर से अयोध्या वासी सीता जी के अग्नि परीक्षा की मांग करते हैं लेकिन ये सब देखकर माता सीता खुद अयोध्या छोड़कर चली जाती हैं।
जिसके बाद वाल्मीकि जी सीता जी को आश्रय देते हैं, जहां माता सीता भगवान राम के दो जुड़वा पुत्र लव और कुश को जन्म देती है। और इस तरह लव और कुश महर्षि वाल्मीकि के शिष्य बन जाते हैं और उनसे शिक्षा ग्रहण करते हैं।
अश्वमेघ यज्ञ
साहित्य के मुताबिक जब महर्षि बाल्मीकि ने लव-कुश को इसके बारे में जानकारी दी, तभी उन्होंने इस महाकाव्य रामायण की रचना की थी और लव कुश को इसके बारे जानकारी दी।
वहीं जब भगवान राम अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन करते हैं, जिसमें महर्षि वाल्मीकि लव और कुश के साथ उसमें शामिल होते हैं। भगवान राम और उनकी जनता के समक्ष लव और कुश महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण का गायन करते हैं। गायन करते हुए लव कुश को माता सीता को वनवास दिए जाने की खबर सुनाई जाती है, तो भगवान राम बहुत दुखी होते हैं।
तब वहां माता सीता आ जाती हैं। उसी समय भगवान राम को माता सीता, लव-कुश के बारे में बताती हैं। इस तरह भगवान राम को ज्ञात होता है कि लव कुश उनके ही पुत्र हैं।
और फिर माता सीता धरती मां को अपनी गोद में लेने के लिए पुकारती हैं, और धरती के फटने पर माता सीता उसमें समा जाती हैं। वहीं कुछ सालों के बाद देवदूत आकर भगवान राम को यह सूचना देते हैं कि उनके रामअवतार का प्रयोजन अब पूरा हो चुका है, और उनका यह जीवन काल भी खत्म हो चुका है।
तब भगवान राम अपने सभी सगे-संबंधी और गुरुजनों का आशीर्वाद लेकर सरयू नदी में प्रवेश करते हैं। और वहीं से अपने वास्तविक विष्णु रूप धारण कर अपने धाम चले जाते हैं। और इस तरह इस संपूर्ण रामायण कथा का अंत होता है ।