रामायण
(रामायण) भारतीय साहित्य के दो प्रमुख महाकाव्य हैं, जिनमें से पहला रामायण और दूसरा महाभारत है। हिंदू धर्म में दोनों महाकाव्यों का अपना-अपना महत्व है।
आपको बता दें कि ये दोनों ग्रंथ भगवान राम और भगवान विष्णु के मानव अवतार श्रीकृष्ण की लीलाओं पर आधारित हैं।
जबकि रामायण में श्री राम मुख्य रूप से रावण के अंत के लिए पैदा हुए थे, जो कि बुराई का एक रूप बन गया था, जबकि महाभारत में, श्री कृष्ण की भूमिका किसी दैवीय शक्ति की नहीं बल्कि एक मार्गदर्शक, राजनयिक, राजनीतिज्ञ की थी। , मित्र, सलाहकार आदि। इस पुस्तक की कथा पांडवों और कौरवों की थी।
जबकि रामायण हिंदू धर्म का एक ऐसा महाकाव्य है, जिसमें गरिमा, सत्य, प्रेम, मित्रता और सेवक धर्म की परिभाषा का बखूबी वर्णन किया गया है।
यानी यह भी कहा जा सकता है कि रामायण में मानव जाति के जीवन और उनके कर्मों का विशेष विवरण दिया गया है। इसके साथ ही रामायण में रिश्तों के महत्व और उनके कर्तव्यों के बारे में भी बताया गया है।
इस महाकाव्य में पति-पत्नी के कर्तव्यों का उल्लेख किया गया है और यह भी बताया गया है कि कैसे पति-पत्नी एक-दूसरे के जीवन में सुख-दुःख के साथी होते हैं। इसके अलावा, आदर्श पिता, आदर्श पुत्र, आदर्श पत्नी, आदर्श भाई, आदर्श मित्र, आदर्श सेवक और आदर्श राजा को भी महाकाव्य रामायण में दिखाया गया है।
पवित्र ग्रंथ
रामायण में भगवान विष्णु के अवतार राम चंद्र जी के चरित्र का पूरा विवरण दिया गया है। आपको बता दें कि इसके पवित्र ग्रंथ में 24 हजार श्लोक, 500 उपखंड और 7 कांड हैं। आइए जानते हैं रामायण की सम्पूर्ण कथा के बारे में लेकिन सबसे पहले जानते हैं इस महाकाव्य की रचना किसने की –
हिंदू धर्म का मुख्य महाकाव्य, रामायण, महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित था, जो वास्तव में रत्नाकर नाम का एक डाकू था। जिन्होंने एक घटना से प्रेरित होकर अपना पूरा जीवन बदल दिया और फिर रामायण जैसे महाकाव्यों की रचना की।
आपको बता दें कि जब डाकू रत्नाकर को अपने पापों का अहसास हुआ। फिर उन्होंने लूटपाट और दूसरों को नुकसान पहुंचाने वाली सभी चीजों को त्याग दिया और एक नया रास्ता अपनाया।
दरअसल, एक बार डाकू रत्नाकर ने नारद जी को लूटपाट के लिए बंदी बना लिया था। तब उन्होंने रत्नाकर का ठीक से मार्गदर्शन किया था और उन्हें राम नाम का जाप करने की सलाह दी थी।
जिसके बाद वह राम के नाम का जाप करने लगे, लेकिन ज्ञान के अभाव में राम-राम का जप मारा-मारा में बदल गया।
अपने जीवन को बदलने के लिए रत्नाकर ने सच्चे मन से साधना की, जिसके बाद उनका नाम वाल्मीकि रखा गया। वहीं उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रहदेव ने उन्हें रामायण लिखने की सलाह दी।
महर्षि वाल्मीकि ने जिनसे प्रेरणा लेकर हिन्दू धर्म के मुख्य महाकाव्य रामायण की रचना की, जिसमें उन्होंने भगवान विष्णु के अवतार रामचंद्र के चरित्र का वर्णन किया है।
रामायण कथा के सातों कांड का वर्णन
रामायण में 7 अलग-अलग तरह के कांड हैं जो कि इस प्रकार है –
- बालकांड
- अयोध्याकांड
- अरण्यकांड
- किष्किन्धा कांड
- सुंदर कांड
- लंडा कांड
- उत्तरकांड
इन सभी कांड में कई तरह की प्रेरक कथाएं हैं जिनका वर्णन हम नीचे कर रहे हैं।
बालकांड
बालकांड महाकाव्य रामायण का पहला भाग है, जिसमें लगभग 2080 श्लोकों का उल्लेख है। नारद मुनि ने महर्षि वाल्मीकि को बालकाण्ड की कथा सुनाई थी।
आपको बता दें कि बालकांड के आदिकाव्य में मां निषाद की चर्चा की गई है और दूसरे सर्ग में क्रौंचमिथुन की चर्चा की गई है। जबकि तीसरे और चौथे सर्ग में रामायण, रामायण की रचना और लव-कुश प्रसंग का वर्णन है। इसके अलावा दशरथ के यज्ञ, पुत्रों (राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न) का जन्म, राम और लक्ष्मण की शिक्षा, दानव-वध, सीता विवाह आदि का विवरण भी विस्तार से दिया गया है।
दशरथ का यज्ञ और भगवान राम का जन्म
महर्षि वाल्मीकि द्धारा रचित महाकाव्य रामायण में दशरथ अयोध्या के रघुवंशी राजा थे और मर्यादा पुरुषोत्तम राम के पिता थे। रामायण में राजा दशरथ को एक आदर्श महाराजा, पुत्रों से अत्याधिक प्रेम करने वाला पिता और अपने वचनों के प्रति पूरी तरह समर्पित रहने वाला और अपने कर्तव्यों को पूरा करने वाला दिखाया गया है।
आपको बता दें कि अयोध्या राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी -उनकी पत्नियों के नाम कौशल्या, कैकई और सुमित्रा था। वहीं राजा दशरथ की काफी दिनों तक कोई संतान नहीं थी, जिससे वह अपने कुल की जिम्मेदारी संभालने को लेकर काफी चिंता में रहते थे।
अपने सूर्यवंश की वृद्धि के लिए राजा दशरथ ने अपने कुल गुरु ऋषि वशिष्ठ की सलाह मानी और इसके लिए अश्वमेघ यज्ञ और पुत्रकामेष्टि यज्ञ करवाए। देखते ही देखते इस पुत्रकामेष्टि यज्ञ से वेदि से एक आलौकिक युज्ञ पुरुष उत्पन्न हुआ और राजा दशरथ को स्वर्णपात्र में प्रसाद देकर अपनी पत्नियों को खिलाने के लिए कहा।
जिसके बाद राजा दशरथ ने यह प्रसाद अपनी तीनो पत्नियों को खिला दिया। इसके बाद राजा दशरथ को चार पुत्रों की प्राप्ति हुई। जिसमें उन्हें अपनी पहली पत्नी कौशल्या से प्रभु श्री राम, कैकई से भरत और सुमित्रा से लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ।
राजा दशरथ के चारों पुत्र दिव्य शक्तियों से परिपूर्ण और यशस्वी थे। उन चारों को राजकुमारों की तरह पाला गया, और उन्हें शास्त्रों को पूरा ज्ञान दिया गया इसके साथ ही उन्हें युद्ध कला भी सिखाई गई।