रामसेतु पुल
(लक्ष्मण) सीता को राक्षस रावण के चंगुल से लंका से वापस लाने के लिए जब भगवान राम समुद्र तट तक पहुंच गए थे। उसके बाद उस विशाल समुद्र को पार करने के लिए राम की सेना के दो वानर, जिनका जिक्र नल-निल नाम से किया गया है, उन्होनें रामसेतु के पुल का निर्माण किया था।
आपको बता दें कि विशेष तरह के पत्थरों में वानर सेना ने राम नाम लिखकर इस पुल का समुद्र के बीचों-बीच निर्माण किया था। ऐसा माना जाता था कि 30 मील लंबा ये पुल भारत और श्री लंका को भू-भार्ग से आपस में जोड़ता है।
रामसेतु पुल तमिलनाडु-भारत के दक्षिण पूर्वी तट के किनारे रामेश्वरम द्धीप के बीच चूना पत्थर से बनी एक लंबी श्रंखला है, जिस पर राम-लक्ष्मण और वानर सेना चढ़कर माता-सीता को लाने लंका पहुंचे थे।
दूत बनकर अंगद गए थे रावण के पास, लेकिन घमंडी रावण ने एक न सुनी:
शांति से माता सीता को वापस लाने के लिए प्रभु राम के दूत बनकर लंकाधिपति रावण के पास गए थे, इस दौरान उन्होंने रावण के सभी योद्धाओं को चुनौती भी दी थी, उन्होंने अपना पैर जमीन में जमाकर उसे हिलाने के लिए कहा था।
लेकिन धूर्त रावण के योद्धाओं में से कोई भी एक योद्धा उनके पैर को हिला तक नहीं सका।
ये देखकर रावण, प्रभु राम के दूत अंगद के चरण को हिलाने के लिए आया तभी अंगद ने उनसे कहा चरण मेरे नहीं मूर्ख भगवान राम के पकड़ो, जिन्होंने इस पूरी सृष्टि का निर्माण किया है और अपने किए पर माफी मांग लो इसके साथ ही प्रभु राम की धर्मपत्नी को सम्मान के साथ लौटा दो लेकिन बलशाली और घमंड में चूर रावण ने एक नहीं सुनी क्योंकि वह सिर्फ और सिर्फ युद्ध चाहता था।
लक्ष्मण-मेघनाथ का युद्ध, हनुमान जी का संजीवनी पर्वत लाना
वहीं जब शांति से माता-सीता को वापस लाने की सारी कोशिशें नाकाम हो गईं तो युद्ध शुरु हो गए। सबसे पहले लक्ष्मण और रावण के भाई मेघनाथ में युद्ध शुरु हुआ। इस युद्द में लक्ष्मण शक्तिबाण के वार से घायल हो जाते हैं।
जिसके बाद वैद्य हनुमान जी को संजीवनी लाने के लिए कहता है। लेकिन हनुमान जी को औषधि की पहचान नहीं होने पर वह पूरा की पूरा संजीवनी पर्वत ही लक्ष्मण के उपचार के लिए ले जाते हैं। जिसके बाद लक्ष्मण ठीक हो जाते हैं और फिर अपनी शक्ति का इस्तेमाल कर दुष्ट मेधनाथ का वध कर देते हैं।
कुभ्मकरण को नींद से जगाना
प्रभु राम और रावण के बीच होने वाले युद्ध के लिए रावण कुम्भकर्ण को जगाने के लिए भेजता है। वहीं युद्द में कुंभकर्ण को भी प्रभु राम के हाथों से परगति की प्राप्ति होती है।
राम-रावण का युद्ध
लंका-कांड में एक के बाद एक कई युद्ध होते हैं लेकिन भगवान राम और महाबलशाली रावण के बीच हुआ युद्ध काफी बड़ा युद्ध था।
जिसमें रावण की विशाल सेना ने प्रभु राम की वानर सेना को हराने का कठोर षणयंत्र रचा था और बलशाली सैनिकों को भी इस युद्द में उसकी तरफ से हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित किया था।
लेकिन भगवान राम की महिमा के आगे रावण की सारी साजिशें नाकाम साबित हुईं और प्रभु राम के हाथों उस महापापी असुर का अंत हुआ।
विभीषण को सौंपा लंका का राज्य:
राक्षस रावण की मौत के बाद प्रभु राम ने लंका का कार्यभार संभालने के लिए विभीषण का चयन किया और उसे लंका की राजगद्दी पर बिठा दिया।
जिसके बाद विभीषण का राज्यभिषेक भी बड़ी धूम-धूम से किया गया और यहां की जनता भी रावण की प्रताड़ना से परेशान हो चुकी थी और वह एक प्रतापी और न्याय करने वाला राजा की खोज में थी।
इस तरह प्रजा को भी विभीषण के रूप में एक अच्छा राजा मिलता है।
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