सुग्रीव ने निभाई दोस्ती
(सुग्रीव) वर्तमान में भगवान राम की सहायता से सुग्रीव को किष्किंधा के सिंहासन पर बिठाया गया था, लेकिन इस दौरान वह आनंद में इतना लीन हो जाता है कि वह भगवान राम को दिया गया वचन भूल जाता है। (सुग्रीव)
बाली की पत्नी तारा ने लक्ष्मण को सूचित किया। यह सुनकर लक्ष्मण क्रोधित हो जाते हैं और सुग्रीव को संदेश भेजते हैं कि यदि वह भगवान राम को दिए गए वचन को भूल गए, तो वे पूरी वानर सेना को नष्ट कर देंगे।
इसके बाद सुग्रीव को अपने मित्र भगवान राम को दिया गया वचन याद आता है और लक्ष्मण की बात मानकर वह अपने वानरों को माता सीता की खोज में संसार के चारों कोनों में भेजता है। जबकि उत्तर, पश्चिम और पूर्व की टीमों के वानर खोजी खाली हाथ लौटे। (सुग्रीव)
जबकि दक्षिण दिशा में खोजी दल का नेतृत्व अंगद और हनुमान कर रहे थे, और वे सभी समुद्र के किनारे जाकर रुक गए। तब अंगद और हनुमान को जटायु के बड़े भाई संपति से सूचना मिली कि माता सीता को लंकापति राजा रावण बलपूर्वक लंका ले गया था। इसके बाद सुग्रीव भगवान राम, लक्ष्मण और उनकी सेना के साथ माता सीता को बचाने के लिए लंका की ओर बढ़ते हैं।
सुंदरकांड का पाठ
महर्षि वाल्मीकि द्धारा रचित रामायण का सुंदरकांड का पाठ पांचवां सोपान है। आपको बता दें कि सुंदरकांड के पाठ में पवनसुत हनुमान जी के यश का गुणगान किया गया है।
इस सोपान के नायक हनुमान जी है जिनके द्धारा किए गए महान कामों का बखान इस पाठ में खूब देखने को मिलता है। सुंदरकांड में हनुमान जी का लंका की ओर प्रस्थान, विभीषण से भेंट, सीता से भेंट करके उन्हें श्री राम की मुद्रिका देना, अक्षय कुमार का वध, लंका दहन और लंका से वापसी तक के घटनाक्रम आते हैं।
आपको बता दें कि रामायण में सुंदरकांड की कथा सबसे अलग है। संपूर्ण रामायण कथा श्री राम के गुणों और उनके पुरुषार्थ को दर्शाती है लेकिन सुंदरकांड एकमात्र ऐसा अध्याय है, जो सिर्फ हनुमानजी की शक्ति और विजय का कांड है। वहीं महाकाव्य रामायण में सुंदरकांड के पाठ का अपना एक अलग महत्व है।
ऐसी मान्यता है कि जब भी किसी व्यक्ति के जीवन में ज्यादा परेशानियां हों, कोई काम नहीं बन रहा हो, आत्मविश्वास की कमी हो तो सुंदरकांड का पाठ करने से सारी समस्याओं का समाधान खुद ही निकलने लगता है।
आपको बता दें कि कई बार विद्वान पंडित और ज्योतिष भी कष्टों का निवारण करने के लिए सुंदरकांड का पाठ करने की सलाह देते हैं। आइए जानते हैं इस पाठ की कथा के बारे में –
हनुमान जी का अशोक वाटिका में प्रवेश और सीता जी से भेंट
माता सीता की खोज करते-करते पवनपुत्र हनुमान विशाल रुप धारण कर और विशाल समुद्र पार करते हुए लंका पहुंचते हैं। जहां वह माता-सीता की तलाश चारों तरफ करते हैं।
काफी खोज के बाद वे देखते हैं कि माता सीता अशोक वाटिका में एक पेड़ की नीचे बैठी हैं और श्री राम से मिलने के लिए दुखी हैं और राक्षस रावण की बहुत सारी राक्षसी दासियां माता-सीता को रावण से विवाह करने के लिए बाध्य कर रही थीं।
सभी राक्षसी दासियों के चले जाने के बाद पवनपुत्र हनुमान माता-सीता तक पहुंचे और माता सीता को प्रणाम किया और श्री राम के बारे में बताया कि, भगवान राम ने उनके लिए अंगूठी दी है और कहा है कि – श्री राम, उनको जल्द लेने आएंगे।
वहीं माता सीता भी राम के परम भक्त हनुमान जी को जुड़ामणि देती हैं और कहती हैं। यह प्रभु राम को देना और कहना कि वह अपने स्वामी राम का इंतजार कर रही हैं।
इसके बाद हनुमान जी अशोक वाटिका में लगे फलों को माता-सीता की अनुमति लेकर खाते हैं। इस दौरान वह कुछ पेड़ों को उखाड़ देते हैं।
वहीं यह सब देखकर अशोक वाटिका की देखभाल करने वाला योद्धा उनको पकड़ने के लिए भागता है लेकिन हनुमान जी उन्हें भी नहीं छोड़ते हैं, और हनुमान जी, इस दौरान राक्षस रावण की लंका की कुछ सेना को भी मार देते हैं तो कुछ को अपनी शक्ति से घायल कर देते हैं।
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