14 साल का वनवास
(14 साल का वनवास) मंथरा के कहने पर रानी कैकयी कोप भवन में जाकर रहने लगी और उन्होनें अन्न-जल सब का त्याग कर दिया। वहीं दूसरी तरफ राजा दशरथ अपने पुत्र राम के राज्यभिषेक को लेकर काफी खुश थे और पूरा महल खुशियां मना रहा था।
और यह खुशी राजा दशरथ अपनी प्रिय रानी कैकयी से भी बांटना चाहते थे इसके लिए वे कैकयी के कक्ष में जाते हैं लेकिन वहां जाकर वे रानी कैकयी की हालत देखकर उनकी चिंता के बारे में पूछते हैं, तब रानी कैकयी उनकी किसी भी बात का कोई जवाब नहीं देती हैं, तब राजा दशरथ उन्हें अपने राम के राज्यभिषेक करने के फैसले के बारे में बताते हैं।
जिसके बाद रानी कैकयी मंथरा के बहकावे में आकर राजा दशरथ से दो वचन मांगती हैं। जो कि राजा दशरथ ने कई साल पहले उनकी जान बचाने के लिए कैकई ने से मांगने के लिए कहा था।
रानी कैकई, राजा दशरथ से अपने पहले वचन के रूप में राम को 14 साल का वनवास और दूसरे वचन के रूप में अपने पुत्र भरत को अयोध्या के राजसिंहासन पर बिठाने के लिए कहती हैं। (14 साल का वनवास)
कैकयी के इन दोनो वचनों को सुना राजा दशरथ चौंक गए और फिर कैकयी को समझाते हुए इन दोनों वचनों पर दोबारा से विचार करने और इन वचनों को वापस लेने के लिए बोले लेकिन कैकयी अपनी बात पर अटल रहीं। (14 साल का वनवास)
मर्यादा पुरुषोत्तम
रानी कैकयी के दोनों वचनों को सुनकर राजा दशरथ बेहद आहात हुए थे और वे रानी कैकयी के दोनों वचनों को मानने से मना कर देते हैं लेकिन रानी कैकयी कहती हैं कि – यह रघुकुल की रीति है कि प्राण जाए पर वचन नहीं जाए, और आप अपने वचनों से पीछे नहीं हट सकते। (14 साल का वनवास)
इस तरह राजा दशरथ को रानी कैकयी के वचनों का न चाहते हुए भी मानना पड़ता है। इसके बाद उन्होनें भरत को राजगद्दी सौंप दी और प्रभु राम को 14 साल के लिए वनवास जाने के लिए कहा। वहीं भगवान राम तो मर्यादा पुरुषोत्तम थे। (14 साल का वनवास)
इसलिए वे रघुकुल की रीती की रक्षा के लिए और अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए वनवास जाने को तैयार हो जाते हैं। वहीं जब माता सीता और उनके भाई लक्ष्मण को वनवास जाने के बारे में पता चला तो उन्होंने भी राम के साथ वनवास जाने का आग्रह किया।
पहले तो श्री राम ने माता सीता को वन ले जाने के लिए मना कर दिया, तब सीता ने प्रभु राम से कहा कि जिस वन में आप जाएंगे वही मेरा अयोध्या है और आपके बिना अयोध्या मेरे लिए नरक की तरह है।
जिसके बाद वे सीता को अपने साथ ले जाने के लिए तैयार हो गया और बाद में लक्ष्मण को भी अपने साथ वन ले जाने की अनुमति दे दी। इस तरह प्रभु राम, माता सीता और लक्ष्मण तीनों अपने 14 साल के वनवास के लिए निकल पड़े। (14 साल का वनवास )
वियोग में निकले राजा दशरथ के प्राण:
राजा दशरथ का राम से अत्याधिक लगाव था और उनका बिछड़ना मन ही मन उन्हें परेशान कर रहा था। वह यह वियोग सहन नहीं कर सके। और कुछ समय बाद अपने पुत्र के वियोग में उन्होंने प्राण त्याग दिए।
इस दौरान भरत अपने मामा के यहां गए हुए थे, तभी उन्होंने इस घटना के बारे में सुना। जिसके बाद वह अपनी माता कैकयी पर अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने अपनी माता का त्याग कर दिया।
भरत अपने माता के किए पर बेहद दुखी हुए और उन्होंने अयोध्या की राजगद्दी पर बैठने से मना कर दिया और वह अपने भाई राम को अयोध्या लाने के लिए उन्हें वन में ढूंढने के लिए चले गए। और फिर वन में जाकर वे अपने प्रिय भाई राम-लक्ष्मण और सीता से मिले और उनसे अयोध्या लौटने का आग्रह किया।
लेकिन तब राम ने अपने पिता के वचनों का पालन करते हुए अयोध्या वापस लौटने से मना कर दिया।
जिसके बाद भरत, भगवान राम की चरण पादुका अपने साथ लेकर अयोध्या वापस लौट आए और उन्होंने राम की चरण पादुका को अयोध्या के राजसिंहासन पर रख दिया और भरत अपने राजदरबारियों से बोले जब तक भगवान वनवास से नहीं लौटते और तब तक उनकी चरण पादुका अयोध्या के राज सिंहासन पर रखी रहेंगी और वे उनके दास बनकर अयोध्या का कार्यभाल संभालेंगे।
इस महाकाव्य के अयोध्याकांड में बाद में रानी कैकयी को भी अपनी गलती पर पश्याताप हुआ। लेकिन जब तक बहुत देर हो चुकी थी।
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