चैती छठ 2024:
चैती छठ 2024:छठ पर्व बिहार का सबसे बड़ा पर्व है. इस पर्व की आस्था अपरंपार है. इस पर्व को प्रकृति का पर्व भी कहा जाता है. 12 अप्रैल से चैती छठ का शुभारंभ होने जा रहा है. जो 4 दिनों का कठिन व्रत है. इस पर्व में कद्दू के भात का विशेष महत्व है. इसमें भगवान सूर्य की उपासना की जाती है. कद्दू भात का शुभ मुहूर्त 4.56 बजे से है. इसके बाद ही गंगा स्नान कर प्रसाद बनाने का कार्य आरम्भ कर सकते हैं.
क्या है कद्दू भात का महत्व
जब इसको लेकर पंडित गुलशन झा से बात की गई तो उन्होंने बताया कि कद्दू को फल माना गया है. इस दिन लोग गंगा स्नान करने के बाद कद्दू की सब्जी बनाते हैं. इसमें पूरी शुद्धता का ख्याल रखा जाता है. सेंधा नमक से इसमें प्रसाद बनाया जाता है.
जानें क्या है अर्घ्य का सही समय
पंडित जी ने बताया कि चैती सबसे पुराना व्रत है. कई सदियों से यह पर्व चलते आ रहा है. उन्होंने बताया कि 14 अप्रैल को संध्या अर्घ्य, 15 अप्रैल को सुबह का अर्घ्य दिया जाएगा. शाम का अर्घ्य 5.30 से प्रारंभ हो जाएगा तो वहीं सुबह का अर्घ्य 5.55 से प्रारंभ होगा.
सेंधा नमक है काफी लाभदायक
पंडित जी ने बताया कि सेंधा नमक शुद्ध माना जाता है. इसलिए इस नमक से ही भोजन बनाया जाता है. डाइटीशियन अनिता कुमारी की मानें तो उन्होंने बताया कि सेंधा नमक में कई ऐसे तत्व होते हैं, जिससे शरीर को बहुत एनर्जी मिलती है. उन्होंने बताया कि अगर कोई व्यक्ति को चक्कर आता है और इस नमक को पानी में मिला के पीने से इससे तुरंत निजात मिल जाएगा. इसलिए इस नमक का विशेष महत्व है. वहीं कद्दू को ऋतु फल भी माना जाता है. इसलिए इसका सेवन किया जाता है
इसमें चढ़ाया जाता है मौसमी फल
पंडित जी ने बताया कि इसमें मौसमी फल चढ़ाया जाता है. इसमें गन्ना, नारियल, नारंगी समेत कई तरह के फल को चढ़ाया जाता है. यह षष्ठी के दिन मनाया जाता है. इसलिए इस पर्व को छठ पर्व के नाम से जाना जाता है.
चैती छठ, हिंदू समुदाय के बीच उत्साह के साथ मनाया जाने वाला एक श्रद्धेय त्योहार है, जो वसंत की शुरुआत का प्रतीक है और सूर्य देव की पूजा के लिए समर्पित है। 2024 में, चूंकि भक्त इस शुभ अवसर को मनाने की तैयारी कर रहे हैं, कद्दू भात (कद्दू चावल) खाने और गंगा के पवित्र जल में डुबकी लगाने जैसे पारंपरिक अनुष्ठानों का महत्व सर्वोपरि बना हुआ है।
श्रद्धेय परंपरा: चैती छठ का गहरा सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व है, जो पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने के लिए सूर्य देव के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है। कद्दू भात चढ़ाने की रस्म एक विशेष स्थान रखती है, जो प्रचुरता, समृद्धि और फसल के मौसम का प्रतीक है।
पाक अनुष्ठान: कद्दू भात की तैयारी में कद्दू, चावल और सुगंधित मसालों का कुशल मिश्रण शामिल होता है, जिससे एक स्वादिष्ट व्यंजन बनता है जो मौसम के सार को दर्शाता है। इस स्वादिष्ट व्यंजन को तैयार करने के लिए परिवार एक साथ आते हैं, इसमें प्रेम और भक्ति का संचार होता है।
आध्यात्मिक शुद्धि: चैती छठ का एक अन्य अभिन्न पहलू गंगा स्नान, या गंगा के पवित्र जल में स्नान के माध्यम से शरीर और आत्मा की अनुष्ठानिक सफाई है। भक्त भोर से पहले नदी के किनारे इकट्ठा होते हैं, उगते सूरज को अर्घ्य देते हुए खुद को शुद्ध करने वाले पानी में डुबोते हैं।
सामुदायिक जुड़ाव: चैती छठ समुदाय और एकजुटता की भावना को बढ़ावा देता है, क्योंकि परिवार और दोस्त उत्सव मनाने के लिए एकजुट होते हैं। कद्दू भात साझा करने और गंगा स्नान में भाग लेने से सामाजिक बंधन मजबूत होते हैं, सद्भाव और एकजुटता के मूल्यों को मजबूत किया जाता है।
पर्यावरण के प्रति जागरूक समारोह: हाल के वर्षों में, चैती छठ के पर्यावरण-अनुकूल उत्सवों पर जोर बढ़ रहा है, कद्दू भात के लिए जैविक सामग्री का उपयोग करने और गंगा स्नान के दौरान जल निकायों की सफाई सुनिश्चित करने जैसी स्थायी प्रथाओं को बढ़ावा दिया गया है।
निरंतर श्रद्धा: जैसे-जैसे चैती छठ 2024 नजदीक आता है, सूर्य देव का सम्मान करने और कद्दू भात और गंगा स्नान जैसे अनुष्ठानों में भाग लेने की शाश्वत परंपराएं पीढ़ियों से चली आ रही स्थायी सांस्कृतिक विरासत और आध्यात्मिक विरासत की याद दिलाती हैं।
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