भगवान विष्णु के पांचवें अवतार
भगवान विष्णु के पांचवें अवतार : जिले के कपिलेश्वर स्थान महादेव का इतिहास बड़ा ही अनोखा है. कहा जाता है कि प्रभु श्रीराम और माता सीता के विवाह के दौरान जनकपुर प्रवास करते हुए कपिल मुनि इस स्थल पर विश्राम कर रहे थे. उसी वक्त भगवान शिव ने उन्हें स्वप्न दिया. शिव के स्वप्न से वे जागे और शिवलिंग की खोज शुरू कर दी. थोड़ी देर के बाद उन्होंने देखा कि एक गाय की दूध धारा वहां बह रही है. करीब जाने पर उन्हें शिवलिंग का एहसास हुआ और उन्होंने इसकी पूजा-अर्चना शुरू कर दी.
विष्णु के 24 अवतारों में से एक 5वां अवतार माना जाता है
कैसे हुई शिवलिंग की स्थापना?
कई देवी-देवताओं की प्रतिमा है स्थापित
देवताओं और असुरों का समर्थन प्राप्त
समुद्र मंथन के समय, देवताओं और असुरों का समर्थन प्राप्त करने के लिए भगवान विष्णु ने कूर्म अवतार धारण किया। जब धरती और स्वर्ग के बीच चली रही यह रक्षा युद्ध थमा, तो भगवान विष्णु ने एक महत्वपूर्ण साधु को खोजने का आदेश दिया। समुद्र मंथन के बाद, भगवान विष्णु के पांचवें अवतार के रूप में, वे कपिलेश्वर नाथ की खोज में निकले। उन्होंने महादेव के शिवलोक में अपना आदेश पूरा किया।
कपिलेश्वर नाथ ने भगवान शिव का आशीर्वाद
ध्यान और तप की अनदेखीमारी विधि में, कपिलेश्वर नाथ ने भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त किया। उन्होंने महादेव के सामने अपनी निष्क्रियता को धार्मिक ज्ञान के साथ संजीवनी देने का वचन दिया। भगवान विष्णु के इस अवतार में, कपिलेश्वर नाथ ने न केवल धरती पर धर्म की रक्षा की, बल्कि उन्होंने अपने आत्मा की आंतरिक खोज में भी महादेव की साक्षात्कार की।
आध्यात्मिक ज्ञान की महत्ता को उजागर
इस अवतार की कहानी ध्यान, तप, और आध्यात्मिक ज्ञान की महत्ता को उजागर करती है। कपिलेश्वर नाथ के इस यात्रा में, हमें संतों और ईश्वरीय शक्तियों के भीतरी और बाहरी प्रकाश के प्रति समर्पित होने की प्रेरणा मिलती है। इस पांचवें अवतार के माध्यम से, भगवान विष्णु ने न केवल धरती की रक्षा की, बल्कि अपने भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर करने का संकल्प भी किया।
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