महादेव मंदिर: महादेव के इस मंदिर में खुद प्रकट हुआ था शिवलिंग

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महादेव मंदिर

महादेव मंदिर: उत्तराखंड में स्थित ऋषिकेश एक पावन तीर्थ स्थल है. ऋषिकेश में कई सारे मंदिर स्थापित है. हर मंदिर की मान्यता और अपना इतिहास है.  वहीं यहां भगवान शिव के कई सारे प्राचीन मंदिर स्थापित हैं. उन्हीं में से एक मंदिर जिसके बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं  वह नर्मदेश्वर  लाल मंदिर  के नाम से प्रसिद्ध है. यह मंदिर ऋषिकेश के त्रिवेणी घाट के पास ही गंगा के तट पर स्थित है.

ऋषिकेश का 100 साल पुराना मंदिर

लोकल 18 के साथ बातचीत में महंत राधा पुरी ने बताया कि यह मंदिर ऋषिकेश में पावन गंगा के तट पर स्थित है, जिसे सभी नर्मदेश्वर महादेव के नाम से भी जानते हैं. यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है. यहां स्थापित शिवलिंग एक स्वयंभू शिवलिंग है, जो कि स्वयं नर्मदा नदी से निकला हुआ है. यह शिवलिंग ओंकारेश्वर के पास स्थित धावड़ी कुंड जिसमें नर्मदा का वास है, वहीं से प्रकट हुआ है. इसीलिए इसे नर्मदेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है. साथ ही इसका इतिहास लगभग 100 साल से ज्यादा पुराना है. यह मंदिर ऋषिकेश के प्रसिद्ध व प्राचीन मंदिरों में से एक है, इसीलिए यहां दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ रहती है.

महादेव मंदिर

 

यहां स्थापित है स्वयंभू शिवलिंग

महंत राधा पुरी ने बताया कि नर्मदा नदी भगवान शिव की पुत्री मानी जाती है, पुराणों के अनुसार भगवान शिव से ही नर्मदा नदी की उत्पत्ति हुई है. इसीलिए इस नदी से उत्पन्न शिवलिंग का अपने आप में ही विशेष महत्व है. साथ ही जो भी भक्त इस शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं या रुद्राभिषेक करते हैं भगवान शिव उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं. अगर आप ऋषिकेश घूमने आए हैं या फिर आने की सोच रहे हैं, तो इस मंदिर के दर्शन जरूर करें. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस मंदिर के पट प्रातः 5 बजे खुल जाते हैं और शाम 7 बजे के करीब संध्या आरती होती है. जिसके कुछ ही समय बाद यह मंदिर बंद हो जाता है.

श्रद्धालुओं के चेहरों

सूर्य की किरणों के झरोखों से आधे चैतन्य के संग समेटे हुए, एक पवित्र स्थान था जहां महादेव का वास बसा हुआ था। यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं के चेहरों पर ध्यान और आनंद का प्रकट होता था। उनकी मनोकामनाएं यहाँ पूरी होती थीं, जैसे कि आत्मा की शांति, शरीर के रोगों की निवृत्ति, और जीवन की दुःखों से मुक्ति।

महादेव मंदिर

 

आध्यात्मिकता और समरसता

यहाँ की सुन्दरता मानवीय सोच को परिपूर्ण करती थी। मंदिर की स्थापना का स्त्रोत आध्यात्मिकता और समरसता में बसा हुआ था। चट्टानों के बीच बसा यह स्थान आस्था के प्रतीक के रूप में उभरा था, जो दर्शन करने वालों को आत्मा के साथ जोड़ने की एक अनूठी अनुभूति प्रदान करता था।मंदिर के पवित्र वातावरण में, अर्पित भक्ति के आवाज़ और ध्यान की गहराई में डूबे हुए, लोग अपने अंतर में अमरता की खोज करते थे। यहाँ दर्शन मात्र से ही नहीं, बल्कि एकाग्रता और समर्पण के माध्यम से भक्ति की सही महत्ता को प्राप्त किया जा सकता था।

उद्देश्य व्यक्ति को आत्मनिर्भर

इस मंदिर की स्थापना का उद्देश्य व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाने के लिए था। यहाँ की वातावरणिक शांति, मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास में मदद करती थी। चाहे वह संगीत की महफ़िल हो या ध्यान की अंतःकरण यात्रा, मंदिर में एक अद्वितीय सांस्कृतिक और आध्यात्मिक अनुभव की खोज थी।जो लोग इस मंदिर के दर्शन करने आते थे, वे न केवल शिव की भक्ति में रमते थे, बल्कि अपने अंतर में अनंतता का अनुभव करते थे। यहाँ का वातावरण एक ऐसा महासागर था, जो लोगों को आत्मा की उन्नति की दिशा में अग्रसर करता था।

 

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