मां दुर्गा: 450 साल पुराने मंदिर की अनुपम प्रतिमा

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मां दुर्गा

मां दुर्गा: बिहार के गया शहर स्थित मां दुखहरनी मंदिर काफी प्रसिद्ध है. यहां हर दिन श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है. सोमवार को माता के दरबार में हजारों की संख्या में श्रद्धालु पूजा-पाठ करने आते हैं. मां के आशीर्वाद से भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है. मान्यता है कि लोगों के दुखों को हरने वाली मां दुखहरनी की पूजा करने और उनका आशीर्वाद लेने से जीवन के हर प्रकार का कष्ट दूर होता है. घर में सुख समृद्धि, शांति और मनोकामना की पूर्ति होती है.

मोरिया घाट मोहल्ला स्थित मां दुखहरणी मंदिर

गया शहर के मोरिया घाट मोहल्ला स्थित मां दुखहरणी मंदिर में तीन कलश की स्थापना की जाती है. यहां माता त्रिपुर दुर्गा आदिशक्ति महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के रूप में विराजमान हैं. मान्यता है कि दुखी और पीड़ित श्रद्धालु इस मंदिर में आकर मां के दर्शन कर पूजा-अर्चना करते हैं तो उनके दुख का हरण हो जाता है. मां दुखहरनी मंदिर की प्रतिमा लगभग 450 साल पुरानी बताई जाती है. मंदिर के पास एक पुरानी गेट बना हुआ है. ऐसा कहा जाता है कि यह गेट गया शहर में प्रवेश करने के लिए बनाया गया था.

मां दुर्गा

 

दुखहरनी मंदिर में 3 कलश की होती है स्थापना

हिंदू धर्म में पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठान में कलश स्थापना का विशेष महत्व है. शास्त्रों में कलश को सुख, समृद्धि और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है. बिना कलश स्थापना के कोई भी धार्मिक अनुष्ठान पूरा नहीं माना जाता है.मंदिर के पुजारी कमल किशोर मिश्रा बताते हैंनवरात्र में गया शहर के विभिन्न मंदिरों में कलश की स्थापना की जाती है, लेकिन मां दुखहरणी मंदिर में तीन कलश की स्थापना की जाती है. मंदिर में माता तीन रूपों में विराजमान हैं, इसलिए तीन कलश स्थापित कर पूरे श्रद्धा और भक्ति भाव के साथ 9 दिन तक मां की अराधना की जाती है. 450 वर्ष पुराने दुखहरणी मंदिर को आराधना, साधना तथा उपासना की शक्ति स्थल माना जाता है

माता दुखहरनी के नीचे शिवलिंग रुप में ब्रह्मा, विष्णु और महेश विराजमान

मंदिर के पुजारी कमल किशोर मिश्रा बताते हैंएक समय था जब इस मंदिर में बलि देने की प्रथा थी, लेकिन वर्ष 1940 के बाद इस प्रथा को बंद कर दिया गया. अब इस मंदिर में यदि भक्त नारियल चढ़ाते हैं तो उसे भी मंदिर के नीचे ही फोड़ना पड़ता है. मंदिर में विराजमान मां दुखहरणी का दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओं को पहले मंजिल पर जाना पड़ता है. इस मंदिर में विराजमान मां दुखहरणी वैष्णव रूप में हैं.मंदिर के पुजारी ने बताया कि यहां मां दुर्गा महा काली, महा सरस्वती और महालक्ष्मी के रूप में विराजमान है. यहां सभी भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है और उनके दुख का पल भर मे नाश हो जाता है. यहां पर माता दुखहरनी के नीचे शिवलिंग रुप में ब्रह्मा, विष्णु और महेश विराजमान है.

मां दुर्गा

 

प्रचंड रूप :शक्ति की उपासना

450 साल पुराने इस मंदिर का महत्व अपनी अद्वितीय प्रतिमाओं में छुपा है। मंदिर में मां दुर्गा के तीन विभिन्न स्वरूप विराजमान हैं, जो भक्तों के दुख को हरने के लिए प्रेरित करते हैं।पहले स्वरूप में, मां दुर्गा अपने प्रचंड रूप में प्रकट होती हैं। यहाँ भक्त शक्ति की उपासना करते हैं, उनके भय को दूर करते हुए। इस रूप में, मां दुर्गा वीरता और साहस का प्रतीक होती हैं।

कौस्तुभ रूप :सौम्यता का प्रतीक शांत रूप संतोष का साक्षात्कार

दूसरे स्वरूप में, मां दुर्गा अपने कौस्तुभ रूप में प्रस्तुत होती हैं। यह रूप भक्तों को सौम्यता और स्नेह का अनुभव कराता है। यहाँ, मां दुर्गा अपने भक्तों के साथ प्रेमपूर्वक बातचीत करती हैं और उनका दुःख हरती हैं।तीसरे स्वरूप में, मां दुर्गा अपने शांत रूप में प्रकट होती हैं। यहाँ भक्त संतोष का अनुभव करते हैं, जब मां उनके दुःख को समाप्त करती हैं। यह रूप भक्तों को संतोष और शांति का अनुभव कराता हैं।

मां दुर्गा

अंतिम विचार: प्रेम, शक्ति और संतोष का समागम

इस मंदिर में मां दुर्गा के तीन स्वरूपों का दर्शन करने से भक्तों को प्रेम, शक्ति और संतोष का समागम मिलता है। यहाँ भक्ति की नींव में भव्यता और ध्यान की गहराई होती है। मां दुर्गा की कृपा से, भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और वे जीवन में सफलता की ओर अग्रसर होते हैं।

 

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