सबसे बड़ा जैन मंदिर
सबसे बड़ा जैन मंदिर :राजस्थान का जालोर जिला तोपखाना और देवी चामुंडा के सुंदरी माता मंदिर के साथ जैन धर्म का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है. यहां 72 जिनालय यानि मंदिर एक साथ एक परिसर में बने हैं. संगमरमर से बने ये जिनालय और उन पर की गयी नक्काशी और कार्विंग देखने लायक है. यहां का शांत सौम्य वातावरण मन को बेहद सुकून देता है. जालोर. जालोर में जैन धर्म के दुर्लभ मंदिर हैं. इन्हें श्री लक्ष्मीवल्लभ पार्श्वनाथ 72 जिनालय के नाम से जाना जाता है. इसकी वजह ये है कि इस मंदिर परिसर में एक साथ 24 पूर्व तीर्थकंरों, 24 वर्तमान और 24 आगामी तीर्थकंरों के मंदिर बनाए गए हैं. यह परिसर पूरा तीर्थ करीब सौ बीघा क्षेत्र में फैला हुआ है. हर मंदिर देखने लायक है.
तीर्थ करीब सौ बीघा क्षेत्र में फैला हुआ
यह पूरा तीर्थ करीब सौ बीघा क्षेत्र में फैला हुआ है. इसमें सात मंजिली धर्मशाला भी बनी है. इसमें सर्वसुविधायुक्त 300 कमरे बनाए गए हैं. इसमें साधु-साध्वियों के लिए विशाल आराधना भवन और तीर्थयात्रियों के लिए भोजनशाला तैयार की गई है. इसमें एक साथ एक हजार व्यक्ति भोजन कर सकते हैं. जालौर के प्रमुख मंदिर में भीनमाल में स्थापित यह देश का सबसे बड़ा जैन मंदिर है. इस जिनालय के प्रेरणास्रोत जैनाचार्य श्री हेमेन्द्र सूरिश्वर जी महाराज के आज्ञाकारी मुनिप्रवर श्री ऋषभचन्द्र विजय जी महाराज हैं. 2 मई, 1996 को इस मंदिर का शिलान्यास किया गया.इनके
दर्शनमात्र से लक्ष्मी की प्राप्ति
यह मंदिर सर्वतोभद्र श्रीयंत्र रेखा पर बनाया गया है. कहते हैं इनके दर्शनमात्र से लक्ष्मी की प्राप्ति हो सकती है. यह तीर्थ 100 एकड़ जमीन पर सर्वतोभद्र रेखा पर संगमरमर से निर्मित है. इस मंदिर को लुकंड परिवार ने बनवाया है. ये देश का पहला विशाल तीर्थ स्थल है. मूलनायक प्रभु पार्श्वनाथ के इस मंदिर में 14 फरवरी, 2011 को प्रतिष्ठा महोत्सव आयोजित किया गया था. लुकंड परिवार के श्री सुमेरमल जी और श्रीमती सुआबाई लुकंड ने मंदिर का निर्माण कार्य शुरू कराया था.
जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ
सुमेरमल लुकंड के वंशज किशोरमल, माणकमल और रमेश लुकंड ने इस कार्य को पूर्ण किया. जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ के नाम पर इसका नाम श्री लक्ष्मीवल्लभ पार्श्वनाथ 72 जिनालय’ रखा गया. जैन धर्म भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अंग है जिसमें सम्यक्त्व और अहिंसा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जैन मंदिर समूहों का अनुभव करना अनुपम होता है, और श्रीयंत्र रेखा पर एक साथ 72 जिनालय वास्तव में अद्वितीय हैं। यहाँ, लक्ष्मी की कृपा सिर्फ दर्शन मात्र से ही नहीं, बल्कि समझ के रूप में भी महसूस होती है।
आध्यात्मिक वातावरण
इन 72 जिनालयों का एक समूह अनोखा आध्यात्मिक वातावरण प्रदान करता है। यहाँ आने वाले लोग ध्यान, स्थिरता और शांति की अनुभूति करते हैं। इन मंदिरों का दर्शन करना एक आत्मिक साहसिकता का अनुभव होता है, जो शांति और संतुलन का अनुभव करने के लिए मानवता की आवश्यकता है।
ऐतिहासिक महत्व वास्तुकला की महानता
ये मंदिर न केवल आध्यात्मिक धरोहर के रूप में महत्वपूर्ण हैं, बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं। इनका निर्माण और संरक्षण एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक प्रक्रिया का हिस्सा है, जो हमें हमारे पूर्वजों की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत के प्रति समझाती है। इन मंदिरों की वास्तुकला की महानता अद्वितीय है। उनकी शिल्पकला में अद्वितीय विविधता और उत्कृष्टता है। इनकी दीवारों, स्तूपों, और शिलापट्ट की सुंदरता को देखकर मन प्रफुल्लित होता है।
पर्यटन का केंद्र
ये मंदिर समूह भारतीय पर्यटन का महत्वपूर्ण केंद्र हैं। इनकी सुंदरता, ऐतिहासिक महत्व और आध्यात्मिक वातावरण दुनिया भर के लोगों को आकर्षित करते हैं। ये स्थल आत्मा को शांति, संतुलन और समृद्धि की अनुभूति कराते हैं।
सामाजिक और धार्मिक संगठन
इन मंदिरों का संचालन और देखभाल सामाजिक और धार्मिक संगठनों के द्वारा किया जाता है, जो समाज के लिए आध्यात्मिक सेवा करते हैं। इनके माध्यम से समाज को धार्मिक और सामाजिक मूल्यों का ज्ञान प्राप्त होता है और लोगों के बीच सौहार्द और एकता की भावना को बढ़ावा मिलता है।
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